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यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल, कह रहा है बार-बार, क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है! महाराजा प्रविरचंद्र भंजदेव कोवे जी की शहादत पर सादर सेवा जोहार

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यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल,

कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत,

भी किसी के दिल में है!

महाराजा प्रविरचंद्र भंजदेव कोवे जी की शहादत पर सादर सेवा जोहार 

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25 मार्च 1966 की सुबह सब कुछ सामान्य था ! राजमहल परिसर में पहले की भांती संस्थायें चल रही थी! चारों ओर आदिवासी अपने कार्य में व्यस्त थे ! लोग ईंटो पर बरतन रखकर रोजाना की तरह अपना खाना तैयार कर रहे थे ! वातावरण में धुंआ फैल रहा था ! प्रातः लगभग 10 बजे के आसपास अचानक शोरगुल सुनाई पडा ! स्थिती तनावपुर्ण होने लगी ! सुरक्षा बल के जवान ईंटो के चुल्हो पर चढे़ बरतनो को लाठी से लुढ़काने लगे , मना करने पर पिटाई करने लगे ! सब तरफ भगदड मच गई ! आदिवासियों द्वारा प्रतिवाद करने पर पुलिस ने अश्रूगैस के गोले दागने सुरू कर दिये ! कुछ ही पलो में दूष्य बदल चुका था !

अश्रूगैस के गोलों और लाठियों के प्रहार से उत्तेजित आदिवासीयों ने तिर-कमान संभाल लिया और प्रतिकार करने लगे ! तभी अचानक पुलिस ने फायरिंग सुरू कर दी ! हजारो की संख्या में राजमहल परिसर में एकत्रित आदिवासी जान बचाकर इधर उधर भागने लगे ! जैसे-जैसे आदिवासी मैदान छोडते जाते पुलिस परिसर में प्रवेश करती जाती और गोलियों की बौछार करती जाती ! पुलिस ने हथियारों का जमकर प्रयोग सुरू कर दिया और आदिवासी आत्मरक्षार्थ तिर का प्रयोग करने लगे ! सुरक्षा बलो द्वारा मशीनगन खुलकर प्रयोग होने लगा ! गोलियों की बौछार इस तरह हो रही थी कि सरसराती गोलिंया महल के आसपास के मकानों के छप्परों के छुती हुई निकल रही थी !

दुष्य बदल चुका था ! राजमहल का मैदान जो कुछ देर पहले हजारो आदिवासी पुरूषो, महिलाओं और बच्चों से भरा हुआ था अब वहा चारों ओर लासें नजर आ रही थी ! कुछ आदिवासी राजमहल के सभी कमरों मे शरण ले रहे थे ! क्रूर सुरक्षा बलों का ताण्डव जारी था ! लगभग 2 बज चुके थे अब गोलियों की बौछार धीमी पड़ गई थी , किंतु छिटपुट गोलियां चल रही थी !

जहा कोई बाहर निकला कि तुरंत ढेर ! सब ओर सन्नाटा ! सारा शहर सकते में था ! कोई नही समझ पाया कि शहर के मध्य राजमहल के भीतर क्या हो रहा था ! दोपहर ढाई बजे ध्वनी विस्तार यंत्र के माध्यम से घोषित किया गया कि जो आदिवासी निहत्थे होंगे और आत्मसमर्पण कर देंगे उन पर गोलिंया नही चलाई जावेगी तथा जो आत्मसमर्पण नही करेंगे उनके विरूद्ध कार्यवाही जारी रहेगी ! कुछ समय तक यह उद्घोषणा जारी रही ! अचानक सबसे प्रवीरचन्द्र भंजदेव महल के बाहर निकले , उन्होने सुरक्षा बलों को इशारे से शांती का संकेत दिया और आदिवासीयों को बाहर निकालने के लिये कहा ! आदिवासी बाहर निकलने से घबरा रहे थे ! कुछ लोगो को महाराजा ने स्वयं पकड कर बाहर निकाला इनमें से कुछ महिलायें और बच्चे भी थे ! लगभग डेढ़-दो सौ महिलाओ – पुरूषों के बाहर निकलते ही सुरक्षा बलों ने उन्हे घेर लिया, उन पर चारों ओर से लाठियाँ बरसाने लगे ! अप्रत्यशित दुष्य देखकर महाराजा अंत्यत विचलीत हो उठे ! उनके चेहरे पर आक्रोश दुर से दिखाई दे रहा था ! वे निहत्थे और आत्मसमर्पण करने वालों पर प्रहार पर रोष व्यक्त करते हुए अपने कक्ष की ओर चल पडे़ ! पोर्च की सीढियों पर कदम रखा ही था कि अचानक उन्हे गोली लगी और वे लडखडाने लगे ! उसी स्थिती में वे किसी तरह अपने कमरे में पहुंचे और बिस्तर पर लेट गए !

सुरक्षा बलों ने उनके कमरे को चारों ओर से घेर लिया और तभी गोलिंयो की लगातार आवाज आयी और अंतः महाराजा प्रवीर का शरीर छलनी हो गया ! दोस्तो , ये कहाणी किसी फिल्म की नही है ! यह बस्तर के महाराजा प्रविरचंद्र भंजदेव काकतीय ( गोंड ) के राजमहल में घटी एक सत्य घटना है ! इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी और जानकारो के मुताबिक इस हत्या कांड में महाराजा प्रविरचंद्र के साथ मारे गये आदिवासीयों की संख्या लगभग 5000 से भी ज्यादा थी लेकीन जब सरकारी आकडा जारी किया तो उसमे बताया गया के

महाराजा प्रविरचंद्र के साथ सिर्फ 13 आदिवासी मारे गये! यह हत्याकांड जालियनवाला बाग से भी बडा़ था लेकीन इतिहास में इसका कोई नामोनिशान नही है ! पुरे मानवता को शर्मोसार करने वाली यह घटना भारत देश के आझादी के बाद की है ! महाराजा प्रविरचंद्र भंजदेव की यह लढाई मासुम आदिवासीयों के जल, जमिन, जंगल के लिये थी ! एक ऐसा स्वाभिमानी राजा जो आदिवासीयों के हक और अधिकार के लिये दटे रहे और अपने जान कुर्बान कर दी लेकीन जुल्मी सरकार के साथ आदिवासी हितों का किसी भी किमत पर सौदा नही किया !

महाराजा प्रविरचंद्र भंजदेव कोवे जी को विनम्र पेनांजली

 

 

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