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संसार में मित्रता हो तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह – पंडित जयशंकर मिश्रा….
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बोध दुबे जी jai johar India TV न्यूज नेटवर्क
संसार में मित्रता हो तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह – जयशंकर मिश्रा
श्रीमदभागवत कथा में सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनकर श्रोता हुए भाव- विभोर
जय जोहार इंडिया TV न्यूज धरमजयगढ़/छाल, एडू : नवापारा (छाल) स्थित दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर पर आयोजित सार्वजनिक भागवत कथा में कथाव्यास जयशंकर मिश्रा (राजिम) द्वारा सुदामा चरित्र का बहुत ही सुंदर ढंग वर्णन किया गया।
सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए । कथाव्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो । सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है, जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वे महल के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं, तब वे प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को वह आपका मित्र बता रहा है । द्वारपाल की बात को सुनकर भगवान श्री कृष्ण जैसे रहते हैं वैसे नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को गले लगा लेते हैं l
इधर भागवत कथा में कृष्ण लीलाओं का भी वर्णन किया गया कथा वाचक पंडित जयशंकर मिश्रा ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का बहुत ही सुंदर ढंग से वर्णन करते हुए कहा कि कृष्ण के पैदा होने के बाद कंस उनको मारने के लिए अपनी राज्य की सर्वाधिक बलवान राक्षसी पूतना को भेजता है।
पूतना भेष बदलकर भगवान श्री कृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण उसे ही मौत के घाट उतार देते हैं । उसके बाद कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन का कार्यक्रम करने की तैयारी करते हैं। भगवान कृष्ण द्वारा उनको भगवान इन्द्र की पूजन करने से मना करते हुए गोवर्धन(पार्वत) महाराज की पूजन करने की बात कहते हैं ।
इन्द्र भगवान उन बातों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। वे अपने क्रोध से भारी मूसलाधार वर्षा करते हैं। जिसको देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देख भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाकर पूरे नगरवासियों को पर्वत को नीचे बुला लेते हैं ।

