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शिक्षक के विदाई पर फफक कर रो पड़े सैकड़ो छात्र छात्राओं और पालक, “बरकरार रही गुरु शिष्य की परंपरा” छात्रों की प्यार को देखकर शिक्षक की आंखें भी हुई नम

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शिक्षक के विदाई पर फफक कर रो पड़े सैकड़ो छात्र छात्राओं और पालक,

“बरकरार रही गुरु शिष्य की परंपरा” छात्रों की प्यार को देखकर शिक्षक की आंखें भी हुई नम

संतोष बीसी की खास रिपोर्ट लेख

जय जोहार इंडिया TV रायगढ़ – पिछले दशकों पहले एक ग्राम चारमार मे एक शिक्षक के आने पर जितनी खुशी थी, आज इस शिक्षक के जाने के गम पर हो रहा है। यह घर घोड़ा विकासखंड की शिक्षक टिकेश्वर पटेल की जिनके अध्यापन कार्य से छात्र एवं पालक दोनों खुश थे।
इन्होंने अपने शिक्षकीय कार्यकाल में बच्चों को सिर्फ पढ़ाया ही नहीं बल्कि खेल के साथ भी नैतिक शिक्षा, संस्कार भी दिए।एक पालक अपने बच्चों को इसी विश्वास से स्कूल भेजता है, कि उसका बेटा बेटी पढ़ लिखकर एक सफल नागरिक बने, अच्छा इंसान बने। और इसी आशा विश्वास के साथ वह प्रतिदिन अपने बच्चों को स्कूल भेजता है और इसी कमी को पूरा करने के लिए यहां कोई और नहीं बल्कि अपने ही पंचायत के शिक्षक टिकेश्वर पटेल ने पिछले दशकों शिक्षा के क्षेत्र में चारमार को एक नया आयाम तक पहुंचाया और नया कीर्तिमान रचा। शिक्षक आने से पालकों में विश्वास हो गया कि, हमारा बच्चा जरूर कुछ नित नवाचार करके आगे जरूर बढ़ेगा।
क्योंकि यहां और कोई नहीं बल्कि इनके मेहनत, लगन और जज्बे की कारण यहां के बच्चों ने नई-नई बुलंदियों को छुए और कई कीर्तिमान को रचा, पालकों को विश्वास हो गया था, कि प्रतिदिन हमारा बच्चा कुछ नया सीख करके स्कूल से घर पहुंच रहा है और इस प्रकार पालकों में विश्वास से भारी उत्साह था, कि उसका बेटा ,बेटी अच्छी तरह से शिक्षा में नित नवाचार करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
लेकिन बीच में शिक्षक के अचानक तबादले से (प्रमोशन) से स्कूली छात्र एवं पालक के आंखे नम हो गई। लेकिन शिक्षा सत्र के मध्य तबादले की खबर आते ही छात्रों के भविष्य एवं पालको के विश्वास को बरकरार रखते हुए पूर्ण शिक्षा सत्र तक वही रुके । शासन के आदेशानुसार और नए शिक्षा सत्र आते ही शिक्षक ने अपने तबादले स्थान पर आना शुरू कर दिया।

“बरकरार रही गुरु शिष्य की परंपरा” छात्रों की प्यार को देखकर शिक्षक की आंखें भी हुई नम”

गुरुओं के प्रति बच्चों में सम्मान की भावना जगै इसके साथ ही गुरु शिष्य के बीच बेहतर संबंध बनाने के पीछे यह भी धारणा है, कि गुरु बच्चों को अपनत्व भाव से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में तत्पर रहे। भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा विष्णु और महेश के बराबर दर्जा दिया गया है।
गुरु ही सच्चा मार्गदर्शन होता है जिनके मार्गदर्शन से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। गुरु ज्ञान को सरल शब्दों में समझाने का कार्य करते हैं। कहा जाता है कि माता-पिता बच्चों को संस्कार देते हैं ।लेकिन गुरु बच्चों के व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ में ज्ञान भरते हैं, इसलिए उनका दर्जा समाज में ऊपर है। इस प्रकार शिक्षक की विदाई पर हर परिवार से कोई न कोई सदस्य विदाई समारोह में पहुंचे और शिक्षक के शिक्षकीय कार्य की सराहना करते हुए छात्र एवम पालक के साथ शिक्षक भी रो पड़े।।

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