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पर्याप्त विश्राम के बिना कोई भी काम कुशलता पूर्वक नहीं हो सकता:- डिग्री लाल सिदार, श्रम एक श्रेष्ठ शिक्षक की तरह है, जिससे हम निरंतर सीखते हैं

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पर्याप्त विश्राम के बिना कोई भी काम कुशलता पूर्वक नहीं हो सकता:- डिग्री लाल सिदार,
श्रम एक श्रेष्ठ शिक्षक की तरह है, जिससे हम निरंतर सीखते हैं
जय जोहार इंडिया TV न्यूज * रायगढ़-* “श्रमेव जयते” श्रम एक श्रेष्ठ शिक्षक की तरह है जो हमें निरंतर सीखाता रहता है। किसी भी काम को करने में श्रम लगता है। श्रम का मतलब है शक्तियों व क्षमताओं का उपयोग। श्रम का एक अर्थ मेहनत करना भी है। श्रम के आगे परि उपसर्ग लगाने से परिश्रम शब्द बनता है। मनुष्य जीवन में श्रम का विशेष महत्व है। जैसे बिना जल, भोजन और वायु के जीवन असंभव है, इस प्रकार बिना श्रम के जीवन नीरस शिथिल हो जाता है। श्रम उस द्वार की तरह है। जिसके खुलने पर चिंता, निराशा, हताशा भाग जाते हैं। श्रम करने से मनुष्य को अपने जीवन में सार्थकता का एहसास होता है। श्रम के द्वारा ही मनुष्य समृद्ध बनता है और अपनी आजीविका कमा पाता है ।जिस तरह मशीनों के कल पुरजे यदि रखे रहते हैं लंबे समय तक नहीं उसका उपयोग नहीं होता है तो उन में जंग लग जाती है। इस तरह जो श्रम का अभ्यास नहीं करते, उनकी प्रतिभा, क्षमता व ताकत भी कुंद पड़ जाती है।
बता दें कि डिग्री लाल सिदार, जिलाध्यक्ष भारतीय जनता मजदूर संघ रायगढ़ ने श्रमिक दिवस पर कहा कि किसी भी कार्य को उसकी सफलता तक पहुंचाने के लिए श्रम का सहारा लेना पड़ता है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करने से मनुष्य सार्थकता का अनुभव नहीं कर पाता और ऐसी सफलता बेकार होती है। जो श्रम का महत्व समझते हैं। वे कभी भी श्रम करने से कतराते नहीं हैं। श्रम के बिना जीवन का आनंद नहीं लिया जा सकता है और नहीं चैन की नींद मिल सकती है। क्योंकि श्रम करने से ही अच्छी भूख लगती है और भूख को तृप्त करने पर अच्छी नींद आती है। श्रम करने से थकान होती है। इसके बाद आराम करने का सुखी कुछ अलग होता है। जिसे मेहनत ना करने वाले लोग समझ नहीं सकते। केवल श्रम करना ही पर्याप्त नहीं होता उसके साथ आराम करना भी जरूरी होता है। जिससे श्रम करने में तीव्रता आती है और श्रम के कारण शरीर में उत्पन्न थकान भी दूर होती है। इस कथन की सत्यता बताने वाला एक प्रसंग है -एक नवयुवक और कुछ बुजुर्ग लकड़हारे जंगल में पेड़ काट रहे थे। युवक बहुत मेहनती था। वह बिना रुके लगातार काम कर रहा था। बाकी लकड़हारा कुछ देर काम करने के बाद थोड़ी देर सुस्ताते और बात करते थे। यह देखकर युवक को लगता था कि वह समय की बर्बादी कर रहे हैं। जैसे-जैसे दिन बीतता गया युवक ने यह देखा कि बाकी लकड़हारे उसकी तुलना में अधिक पेड़ काट पा रहे हैं। जबकि वे बीच-बीच में काम रोक भी देते हैं। यह देखकर युवक ने और अधिक तेजी से काम करना शुरू कर दिया लेकिन वह अभी भी दूसरों की तुलना में कम ही लकड़ी काट पा रहा था। अगले दिन उन बुजुर्ग लकड़हारों ने युवक को काम के बीच में अपने पास चाय पीने के लिए बुलाया। युवक ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि इससे समय व्यर्थ होगा। यह सुनकर एक बूढ़े लकड़हारे ने लड़के से मुस्कुराते हुए कहा तुम लंबे समय से अपनी कुल्हाड़ी में धार किए बिना लकड़ी काटने की कोशिश कर रहे हो। और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार जा रही है। कुछ समय बाद तुम्हारी सारी शक्ति चुक जाएगी और तुम्हें काम बंद करना पड़ेगा। तब युवक को यह पता चला कि आराम के दौरान बाकी लकड़हारे कुल्हाड़ी पर भी धार करते थे वे अकलमंद थे और इसी कारण उनकी कुल्हाड़ियां बेहतर ढंग से लकड़ी काट पा रही थी। उसे बूढ़े लकड़हारे ने युवक को सलाह देते हुए कहा हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग करके अपने कौशल और क्षमताओं को बढ़ाते रहना चाहिए। तभी हमें अपनी पसंद के दूसरे कार्यों को करने का समय मिल पाएगा। पर्याप्त विश्राम के बिना कोई भी अपना काम कुशलता पूर्वक नहीं कर सकता। कुछ समय के लिए काम को रोक कर आराम करने से शरीर में शक्ति का संचार होता है। और अन्य किसी दृष्टिकोण से अपने कार्य का आकलन करने रणनीति बनाने का अवसर मिलता है। इसी तरह श्रम तो करना चाहिए लेकिन उसके साथ
ऐसे उपाय करना चाहिए जिसे हमारी कुशलता व क्षमता बढ़े।।

